magic

Friday 22 April 2016

लकडहारे की समझदारी…

लकडहारे की समझदारी…….

एक लकड़हारा दिन भर लकड़ियां काटता और उन्हें बाज़ार में बेच कर अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करता था ! इस प्रकार बहुत समय बीत गया ! एक दिन लकड़हारे सोचा, मेरी जिंदगी भी क्या जिंदगी है, रोजाना लकड़ियां काटना, उन्हें बाज़ार में बेचना,और अपना एवं अपने परिवार का पालन करना, बस ये ही मेरी जिंदगी बन कर रह गई है ! मेरे जीवन में आराम और आनंद मनाने का कोई अवसर ही नहीं आया! क्या मेरा जीवन इसी प्रकार बीत जायेगा? ये सोच कर उसने अपने मन में निश्चय किया कि में आज तिगुना काम कर के तिगुनी लकड़ियां काटूंगा और उन्हें बाज़ार में बेच कर तीन रोज आराम करूंगा!

ये सोच कर उसने मेहनत करने के लिए कमर कास ली! उसने लगातार मेहनत के साथ काम कर के तीन दिनों कि लकड़ियां काट ली! अधिक मेहनत करने के कारण वह बहुत थक गया और एक पेड़ के नीचे बैठ कर सुस्ताने लगा! उधर से एक साधू महात्मा गुजरे! उन्होंने लकड़हारे को पेड़ के नीचे हांपते और सुस्ताते देख कर पुछा” क्या बात है इतने थके 2 से क्यों लग रहे हो?”

लकड़हारे ने महात्मा को अपने मन कि सारी बात बताई कि किस प्रकार तिगुनी मेहनत कर तीन दिनों कि लकड़ियां काटी और उन्हें उन्हें बेच कर अब तीन दिनों तक आराम करूंगा और चक छान कर सोऊंगा!महात्मा ठहरे महात्मा बोले “तू कितना पागल है, अरे पल का पता नहीं कब मौत आ जाये और तू तीन दिनों कि सोच रहा है! और हँसने लगे!

लकड़हारा एक तो थका हुआ था,और ऊपर से महात्माजी का पर्वचन सुन कर ताव में आगया, उसने कहा “पागल में नहीं आप है. अरे अगर मौत आ गई तो मेहनत करी या ना करी सब बेकार है पर अगर में ज़िंदा रहा तो तीन दिनों तक आराम करने का अवसर तो मिलेगा ! ये कह कर उसने करवट बदल कर आँखें बंद कर ली और आराम करने लगा……महात्माजी मन ही मन सोचने लगे कि इतनी बुद्धि तो मेरे में भी नहीं है !और वहाँ से चले गये!

कहने का अर्थ यह है कि प्रत्येक कार्य जिन्दा रहने के लिये किया जाता है !मरने पर तो सब कुछ बेकार! अतः ये सोच कर ही कार्य करे कि जिंदगी रही तो इस कार्य का आनंद मनाएंगे !

*******

No comments:

Post a Comment

add