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Friday 22 April 2016

गंवाने की आदत

गंवाने की आदत…….

कहते हैं कि इराक के पुराने शहर सिकंदरिया के पुस्तकालय में जब भीषण आग लगी, तो कमोबेश सारी किताबें जल गईं। कुछ एक किताबें ही बचीं। उनमें से एक किसी आदमी ने खरीद ली। वह मामूली रूप से शिक्षित था।

उसे किताब में एक पर्ची मिली। पर्ची पर पारस पत्थर के बारे में लिखा था- पारस पत्थर एक छोटा-सा कंकड़ है। हजारों दूसरे कंकड़ों के साथ एक सागर तट पर पड़ा है। उसकी पहचान यह है कि वह अन्य कंकड़ों की तुलना में थोड़ा गर्म महसूस होता है।

वह आदमी पारस पत्थर ढूंढने के लिए समुद्र की ओर चल पड़ा। उसे लगा कि यदि वह कंकड़ों को उठा-उठाकर देखता रहा, तो एक ही कंकड़ कई बार उठाने में आ जाएगा, और काफी समय नष्ट होगा। इसलिए वह कंकड़ उठाता, उसे परखता और समुद्र में फेंक देता।

ऐसा करते-करते वर्ष बीत गए। एक दिन उसने एक कंकड़ उठाया। वह गर्म था। इससे पहले कि वह कुछ सोचता, आदत से मजबूर उसने पत्थर समुद्र में फेंक दिया। फेंकते ही उसे लगा कि कितनी बड़ी गलती हो गई।

वर्षों तक प्रतिदिन हजारों कंकड़ों को समुद्र में फेंकते रहने की आदत हो जाने के कारण उसने उस कंकड़ को भी समुद्र में फेंक दिया, जिसकी तलाश में उसने  अपना सब कुछ छोड़ दिया था। ऐसा ही हम लोग अपने सामने मौजूद अवसरों के साथ भी करते हैं। उसे पहचानने की एक मामूली चूक से हम मौका गंवा देते हैं।

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एक बाल्टी दूध

एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के बीचो बीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक – एक बाल्टी दूध उस कुएं में डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और लोगों का मरना बन्द हो जायेगा। राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है ।

अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे अगर मै अकेली एक बाल्टी पानी डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है। दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी। राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दूर नहीं हुई और लोग अभी भी मर रहे हैं…

दरअसल ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में आया था वही विचार पूरे राज्य के लोगों के मन में आ गया और किसी ने भी कुंए में दूध नहीं डाला।…….

मित्रों , जैसा इस कहानी में हुआ वैसा ही हमारे जीवन में भी होता है। जब भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे लोगों को मिल कर करना होता है तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और हमारी इसी सोच की वजह से स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं। अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो पूरे देश मेंबर ऐसा बदलाव ला सकते हैं जिसकी आज हमें ज़रूरत है।

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