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Friday 22 April 2016

दो शिक्षाप्रद कथायें…….

दो शिक्षाप्रद कथायें…….

एक दिन किसी कारण से स्कूल में छुट्टी की घोषणा होने के कारण,एक दर्जी का बेटा, अपने पापा की दुकान पर चला गया ।
वहाँ जाकर वह बड़े ध्यान से अपने पापा को काम करते हुए देखने लगा ।
उसने देखा कि उसके पापा कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को पैर के पास टांग से दबा कर रख देते हैं ।
फिर सुई से उसको सीते हैं और सीने के बाद सुई को अपनी टोपी पर लगा लेते हैं ।
जब उसने इसी क्रिया को चार-पाँच बार देखा तो उससे रहा नहीं गया, तो उसने अपने पापा से कहा कि वह एक बात उनसे पूछना चाहता है ?
पापा ने कहा-बेटा बोलो क्या पूछना चाहते हो ?
बेटा बोला- पापा मैं बड़ी देर से आपको देख रहा हूं , आप जब भी कपड़ा काटते हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देते हैं, और सुई से कपड़ा सीने के बाद, उसे टोपी पर लगा लेते हैं, ऐसा क्यों ?
इसका जो उत्तर पापा ने दिया-उन दो पंक्तियाँ में मानों उसने ज़िन्दगी का सार समझा दिया ।
उत्तर था- ” बेटा, कैंची काटने का काम करती है, और सुई जोड़ने का काम करती है, और काटने वाले की जगह हमेशा नीची होती है परन्तु जोड़ने वाले की जगह हमेशा ऊपर होती है ।
यही कारण है कि मैं सुई को टोपी पर लगाता हूं और कैंची को पैर के नीचे रखता हूं………..!!!!

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गुरु अग्निमित्र अपने शिष्य वासुकि को बहुत समझाते कि यह करो, यह मत करो आदि। पर शिष्य पर उनकी बातों का कोई असर नहीं होता था। वासुकि को जो अच्छा लगता, वही करता। जबकि मन को भाने वाले कामों से उसे अक्सर तकलीफ ही होती।

गुरु ने उसे समझाया, पर वासुकि ने कहा, मुझे कोई मार्ग नहीं सूझता। मैं हर बार उन चीजों के बारे में सोचता हूं, जिनके बारे में मना किया गया है। लेकिन पता नहीं क्यों, मेरे मन में उन चीजों को पाने की इच्छा होती रहती है, जो वर्जित हैं। आखिर मैं क्या करूं?

गुरु ने उसे समझाने की कोशिश की। यह भी कहा, गुरुजन जिन कामों के लिए मना करते हैं, उन्हें मत किया करो। लेकिन इस पर शिष्य ने कहा, यह तो आंख मूंदकर किसी की भी आज्ञा मान लेने जैसा होगा। साधना के मार्ग पर चल रहे व्यक्ति का लक्षण तो यह नहीं हो सकता कि जिस काम के लिए कोई मना करे, उसे न किया जाए।

बल्कि वह तो उसे तथ्यों की कसौटी पर कसता है। इस पर गुरु ने कहा, अच्छा, भला-बुरा तय करने का एक सूत्र मैं तुम्हें देता हूं। फिर वह शिष्य को पास ही गमले में लगे एक पौधे के पास ले गए। उसे देखने के लिए कहा और पूछा कि वह क्या है?

शिष्य के पास उत्तर नहीं था। गुरु ने कहा, यह मकोय (बेलाडोना) का विषैला पौधा है। यदि तुम इसकी पत्तियों को खा लो, तो तुम्हारी तुरंत मृत्यु हो जाएगी। लेकिन इसे देखने भर से तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। तुम्हारे मन में सत्पुरुषों द्वारा निंदित विचार और काम आते हैं, तो आने दो।

मन में आ रहे उन विचारों से तुम्हें कोई हानि नहीं होगी। हानि तब तक नहीं होगी, जब तक तुम उन्हें व्यवहार में न उतार लो। इसलिए सुनो सबकी, पर करो वही, जिसे सत्पुरुषों ने प्रमाणित किया हो।

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