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Friday 22 April 2016

लिंकन

दृढ़ संकल्प से बड़े बने लिंकन


अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन अपनी युवावस्था में थे। मन में बहुत कुछ करने की ललक थी, आगे बढऩे का हौसला भी था और कठिनाइयों से जूझने का साहस भी भरपूर था, किंतु निर्धनता बार-बार राह रोकती थी। लिंकन को कानून संबंधी साहित्य के अध्ययन में विशेष रुचि थी, लेकिन अर्थाभाव आड़े आता था।
एक बार उन्हें पता चला कि नदी के दूसरी ओर ओगमोन गांव में एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश रहते थे, जिनके पास कानून की पुस्तकों का अच्छा संग्रह है। लिंकन ने तय किया कि वे न्यायाधीश महोदय के पास जाएंगे और उनसे विनती करेंगे कि वे अपने संग्रह को उन्हें भी उपयोग करने दें।………
उन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। लिंकन ने कोई परवाह नहीं की और बर्फीली नदी में नाव उतार दी। नाव वे स्वयं चला रहे थे। आधी नदी उन्होंने पार की होगी कि नाव एक बड़े हिमखंड से टकराकर चूर-चूर हो गई। फिर भी लिंकन ने हार नहीं मानी। तैरते हुए नदी पार कर न्यायाधीश महोदय के घर पहुंच गए और उनके समक्ष अपनी इच्छा रखी।……
न्यायाधीश महोदय ने उनकी ललक देखकर उन्हें अपनी सारी पुस्तकें पढऩे की अनुमति दे दी, किंतु उस समय उनका घरेलू नौकर छुट्टी पर था। अत: उन्होंने लिंकन को अपने घरेलू काम करने के लिए कहा, जिसे लिंकन ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। वे न्यायाधीश के घर के लिए जंगल से लकडिय़ां बटोरकर लाते, उनकी आवश्यकता का पानी भरते और पारिश्रमिक के नाम पर उन्हें मात्र पुस्तकें पढऩे की छूट थी, लेकिन लिंकन प्रसन्न थे।
संकल्प के धनी लिंकन ने आगे चलकर जो ऊंचाइयां हासिल कीं, वे सर्वविदित हैं। संकल्पशीलता सभी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर उपलब्धि की राह के कांटे चुन लेती है और अंतत: लक्ष्य की प्राप्ति करा ही देती है।…….


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गुलाम की मुहब्बत

एक बादशह अपने गुलाम से बहुत प्यार करता था । एक दिन दोनों जंगल से गुज़र रहे थे, वहां एक वृक्ष पर एक ही फल लगा था । हमेशा की तरह बादशह ने एक फांक काटकर गुलाम को चखने के लिये दी । गुलाम को स्वाद लगी, उसने धीरे-धीरे सारी फांक लेकर खा ली और आखरी फांक भी झपट कर खाने  लगा….

बादशह बोला, हद हो गई । इतना स्वाद । गुलाम बोला, हाँ बस मुझे ये भी दे दो । बादशह से ना रहा गया, उसने आखरी फांक मुह में ड़ाल ली । वो स्वाद तो क्या होनी थी, कडवी जहर थी…….बादशह हैरान हो गया और गुलाम से बोला, “तुम इतने कडवे फल को आराम से खा रहे थे और कोई शिकायत भी नहीं की ।”

गुलाम बोला, “जब अनगिनत मीठे फल इन्ही हाथो से खाये और अनगिनत सुख इन्ही हाथो से मिले तो इस छोटे से कडवे फल के लिये शिकायत कैसी ।”
मालिक मैने हिसाब रखना बंद कर दिया है, अब तो मै इन देने वाले हाथों को ही देखता हूँ । बादशाह की आँखों में आंसू आ गए । बादशाह ने कहा, इतना प्यार और उस गुलाम को गले से लगा लिया ।

Moral- हमे भी परमात्मा के हाथ से भेजे गये दुःख और सुख को ख़ुशी ख़ुशी कबूल करना चाहिये । इसकी परमात्मा से शिकायत नहीं करनी चाहिये……

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