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Friday 22 April 2016

राजा का बकरा…..

राजा का बकरा…..


किसी राजा के पास एक बकरा था.  एक बार उसने एलान किया की जो कोई इस बकरे को जंगल में चराकर तृप्त करेगा मैं उसे आधा राज्य दे दूंगा.
किंतु बकरे का पेटपूरा भरा है या नहीं इसकी परीक्षा मैं खुद करूँगा………
इस एलान को सुनकर एक मनुष्य राजा के पास आकर कहने लगा कि बकरा चराना कोई बड़ी बात नहीं है. वह बकरेको लेकर जंगल में गया और सारे दिन उसे घास चराता रहा. शाम तक उसने बकरे को खूब घास खिलाईऔर फिर सोचा की सारे दिन इसने इतनी घास खाई है अब तो इसका पेट भर गया होगा तो अब इसको राजा के पास ले चलूँ. बकरे के साथ वह राजा के पास गया……….
राजा ने थोड़ी सी हरी घास बकरे के सामने रखी तो बकरा उसे खाने लगा. इस पर राजा ने उसमनुष्य से कहा की तूने उसे पेट भर खिलाया ही नहीं वर्ना वह घास क्यों खाने लगता. बहुतों ने बकरे का पेट भरने का प्रयत्न किया किंतु ज्योंही दरबार में उसके सामनेघास डाली जाती कि वह खाने लगता…….
एक सत्संगी ने सोचा इस एलान का कोई रहस्य है, तत्व है. मैं युक्ति से काम लूँगा. वह बकरे को चराने के लिए ले गया. जब भी बकरा घास खाने के लिए जाता तो वह उसे लकड़ी से मारता . सारे दिन में ऐसा  कई बार हुआ. अंत में बकरे ने सोचा की यदि मैं घास खाने का  प्रयत्न करूँगा तो मार खानी पड़ेगी. शाम को वह सत्संगी बकरे को लेकर राजदरबार में लौटा. बकरे को उसने बिलकुल घास नहीं खिलाई थी फिर भी राजा से कहा मैंने इसको भरपेट खिलाया है. अत: यह अब
बिलकुल घास नहीं खायेगा. कर लीजिये परीक्षा……..
राजा ने घास डाली लेकिन उस बकरे ने उसे खाया तो क्या देखा और सूंघा तक नहीं. बकरे के मन में यह बात बैठ गयी थी की घास खाऊंगा तो मार पड़ेगी. अत: उसने घास नहीं खाई……..
यह बकरा हमारा मन ही है. बकरे को घास चराने ले जाने वाला जीवात्मा है. राजा परमात्मा है. मन को मारो, मन पर अंकुश रखो. मन सुधरेगा तो जीवन सुधरेगा. मन को विवेक रूपी लकड़ी से रोज पीटो.

मिल सके आसानी से उसकी ख्वाहिश किसे है .. जिद्द तो उसकी है जो मुकद्दर में लिखा ही नही है..!

असफलता & सफलता

असफलता सफलता से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है…..

सभी के जीवन में एक समय ऐसा आता है जब सभी चीज़ें आपके विरोध में हो रहीं हों | चाहें आप एक प्रोग्रामर हैं या कुछ और, आप जीवन के उस मोड़ पर खड़े होता हैं जहाँ सब कुछ ग़लत हो रहा होता है| अब चाहे ये कोई सॉफ्टवेर हो सकता है जिसे सभी ने रिजेक्ट कर दिया हो, या आपका कोई फ़ैसला हो सकता है जो बहुत ही भयानक साबित हुआ हो |

लेकिन सही मायने में, विफलता सफलता से ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है | हमारे इतिहास में जितने भी बिजनिसमेन, साइंटिस्ट और महापुरुष हुए हैं वो जीवन में सफल बनने से पहले लगातार कई बार फेल हुए हैं | जब हम बहुत सारे कम कर रहे हों तो ये ज़रूरी नहीं कि सब कुछ सही ही होगा| लेकिन अगर आप इस वजह से प्रयास करना छोड़ देंगे तो कभी सफल नहीं हो सकते |

हेनरी फ़ोर्ड, जो बिलियनेर और विश्वप्रसिद्ध फ़ोर्ड मोटर कंपनी के मलिक हैं | सफल बनने से पहले फ़ोर्ड पाँच अन्य बिज़निस मे फेल हुए थे | कोई और होता तो पाँच बार अलग अलग बिज़निस में फेल होने और कर्ज़ मे डूबने के कारण टूट जाता| लेकिन फ़ोर्ड ने ऐसा नहीं किया और आज एक बिलिनेअर कंपनी के मलिक हैं |

अगर विफलता की बात करें तो थॉमस अल्वा एडिसन का नाम सबसे पहले आता है| लाइट बल्व बनाने से पहले उसने लगभग 1000 विफल प्रयोग किए थे |

अल्बेर्ट आइनस्टाइन जो 4 साल की उम्र तक कुछ बोल नहीं पता था और 7 साल की उम्र तक निरक्षर था | लोग उसको दिमागी रूप से कमजोर मानते थे लेकिन अपनी थ्ओरी और सिद्धांतों के बल पर वो दुनिया का सबसे बड़ा साइंटिस्ट बना |

अब ज़रा सोचो की अगर हेनरी फ़ोर्ड पाँच बिज़नेस में फेल होने के बाद निराश होकर बैठ जाता, या एडिसन 999 असफल प्रयोग के बाद उम्मीद छोड़ देता और आईन्टाइन भी खुद को दिमागी कमजोर मान के बैठ जाता तो क्या होता?

हम बहुत सारी महान प्रतिभाओं और अविष्कारों से अंजान रह जाते |

तो मित्रों, असफलता सफलता से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है…..



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एक बार की बात है, एक पागलखाने के सामने किसी व्यक्ति की कार पंचर हो गयी। कार को रुकते देखकर पागलखाने की दिवार से झांकते हुए एक पागल ने
पूछा, ‘ओ भाई साहब, क्या हुआ?’ उस व्यक्ति ने जवाब दिया, ‘कुछ नही’।( और मन ही बुदबुदाया “पगला कहीं का “). उस व्यक्ति ने कार से उतर कर पहिया बदलने के लिये पंचर वाले पहिये के चारो बोल्ट निकाले ही थे कि भैंसो का झुंड आ गया। वह व्यक्ति उठ कर एक तरफ खडा हो गया। जब भैंसे चली गयी वह व्यक्ति वापिस टायर लगाने के लिये आ गया।

परंतु उसने देखा, चारो नट-बोल्ट गायब थे। वह परेशानी से इधर-उधर ढूढने लगा। वह पागल तब तक वही खडा था। उसने फिर पूछा, ‘भाई साहब क्या हुआ’?
व्यक्ति ने फिर वही जवाब दिया, ‘कुछ नही’। अपना काम कर बे पगले ! फिर वह व्यक्ति बोल्ट ढूढने लगा। थोडी देर बाद पागल ने फिर पूछा, ‘अरे,बताइये ना, क्या हुआ, मैं आपकी कुछ मदद करूँ क्या’?

उस व्यक्ति ने सोचा, ये पागल ऐसे ही दिमाग खायेगा, वह गुस्से से बोला — ‘तुम जाओ भाई, मेरी कार के चारो बोल्ट गुम हो गये है, परेशान मत करो’। पागल बोला, ‘अरे, दिमाग नही है क्या ? पागलो की तरह परेशान क्यो हो रहे हो, बाकी के तीन पहियो से एक-एक बोल्ट निकाल कर इस पहिये मे भी तीन बोल्ट लगा लो। आगे जाकर दुकान से चार बोल्ट खरीद कर चारो मे एक-एक लगा देना।

उस व्यक्ति ने (ताज्जुब से ) उस पागल से कहा की तुम्हें पागल खाने में क्यों रखा है तुम तो काफी अक्लमंद लगते हो तब पागल बोला भाई साहब , मैं, पागल जरूर हूँ पर आपकी तरह मूर्ख नही…

लिंकन

दृढ़ संकल्प से बड़े बने लिंकन


अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन अपनी युवावस्था में थे। मन में बहुत कुछ करने की ललक थी, आगे बढऩे का हौसला भी था और कठिनाइयों से जूझने का साहस भी भरपूर था, किंतु निर्धनता बार-बार राह रोकती थी। लिंकन को कानून संबंधी साहित्य के अध्ययन में विशेष रुचि थी, लेकिन अर्थाभाव आड़े आता था।
एक बार उन्हें पता चला कि नदी के दूसरी ओर ओगमोन गांव में एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश रहते थे, जिनके पास कानून की पुस्तकों का अच्छा संग्रह है। लिंकन ने तय किया कि वे न्यायाधीश महोदय के पास जाएंगे और उनसे विनती करेंगे कि वे अपने संग्रह को उन्हें भी उपयोग करने दें।………
उन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। लिंकन ने कोई परवाह नहीं की और बर्फीली नदी में नाव उतार दी। नाव वे स्वयं चला रहे थे। आधी नदी उन्होंने पार की होगी कि नाव एक बड़े हिमखंड से टकराकर चूर-चूर हो गई। फिर भी लिंकन ने हार नहीं मानी। तैरते हुए नदी पार कर न्यायाधीश महोदय के घर पहुंच गए और उनके समक्ष अपनी इच्छा रखी।……
न्यायाधीश महोदय ने उनकी ललक देखकर उन्हें अपनी सारी पुस्तकें पढऩे की अनुमति दे दी, किंतु उस समय उनका घरेलू नौकर छुट्टी पर था। अत: उन्होंने लिंकन को अपने घरेलू काम करने के लिए कहा, जिसे लिंकन ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। वे न्यायाधीश के घर के लिए जंगल से लकडिय़ां बटोरकर लाते, उनकी आवश्यकता का पानी भरते और पारिश्रमिक के नाम पर उन्हें मात्र पुस्तकें पढऩे की छूट थी, लेकिन लिंकन प्रसन्न थे।
संकल्प के धनी लिंकन ने आगे चलकर जो ऊंचाइयां हासिल कीं, वे सर्वविदित हैं। संकल्पशीलता सभी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर उपलब्धि की राह के कांटे चुन लेती है और अंतत: लक्ष्य की प्राप्ति करा ही देती है।…….


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गुलाम की मुहब्बत

एक बादशह अपने गुलाम से बहुत प्यार करता था । एक दिन दोनों जंगल से गुज़र रहे थे, वहां एक वृक्ष पर एक ही फल लगा था । हमेशा की तरह बादशह ने एक फांक काटकर गुलाम को चखने के लिये दी । गुलाम को स्वाद लगी, उसने धीरे-धीरे सारी फांक लेकर खा ली और आखरी फांक भी झपट कर खाने  लगा….

बादशह बोला, हद हो गई । इतना स्वाद । गुलाम बोला, हाँ बस मुझे ये भी दे दो । बादशह से ना रहा गया, उसने आखरी फांक मुह में ड़ाल ली । वो स्वाद तो क्या होनी थी, कडवी जहर थी…….बादशह हैरान हो गया और गुलाम से बोला, “तुम इतने कडवे फल को आराम से खा रहे थे और कोई शिकायत भी नहीं की ।”

गुलाम बोला, “जब अनगिनत मीठे फल इन्ही हाथो से खाये और अनगिनत सुख इन्ही हाथो से मिले तो इस छोटे से कडवे फल के लिये शिकायत कैसी ।”
मालिक मैने हिसाब रखना बंद कर दिया है, अब तो मै इन देने वाले हाथों को ही देखता हूँ । बादशाह की आँखों में आंसू आ गए । बादशाह ने कहा, इतना प्यार और उस गुलाम को गले से लगा लिया ।

Moral- हमे भी परमात्मा के हाथ से भेजे गये दुःख और सुख को ख़ुशी ख़ुशी कबूल करना चाहिये । इसकी परमात्मा से शिकायत नहीं करनी चाहिये……

व्यावहारिक बुद्धि..

व्यावहारिक बुद्धि..

एक सरोवर मेँ तीन दिव्य मछलियाँ रहती थीँ। वहाँ की तमाम मछलियाँ उन तीनोँ के प्रति ही श्रध्दा मेँ बँटी हुई थीँ।
एक मछली का नाम व्यावहारिकबुद्धि था, दुसरी का नाम मध्यमबुद्धि और तीसरी का नाम अतिबुद्धि था।
अतिबुद्धि के पास ज्ञान का असीम भंडार था। वह सभी प्रकार के शास्त्रोँ का ज्ञान रखती थी।
मध्यमबुद्धि को उतनी ही दुर तक सोचनेँ की आदत थी, जिससे उसका वास्ता पड़ता था। वह सोचती कम थी, परंपरागत ढंग से अपना काम किया करती थी।
व्यवहारिक बुद्धि न परंपरा पर ध्यान देती थी और न ही शास्त्र पर। उसे जब जैसी आवश्यकता होती थी निर्णय लिया करती थी और आवश्यकता न पड़नेँ पर किसी शास्त्र के पन्ने तक नहीँ उलटती थी।
एक दिन कुछ मछुआरे सरोवर के तट पर आये और मछलियोँ की बहुतायत देखकर बातेँ करनेँ लगे कि यहाँ काफी मछलियाँ हैँ, सुबह आकर हम इसमेँ जाल डालेँगे। उनकी बातेँ मछलियोँ नेँ सुनीँ।
व्यवहारिक बुद्धि नेँ कहा-” हमेँ फौरन यह तालाब छोड़ देना चाहिए। पतले सोतोँ का मार्ग पकड़कर उधर जंगली घास से ढके हुए जंगली सरोवर मेँ चले जाना चाहिये।”
मध्यमबुद्धि नेँ कहा- ” प्राचीन काल से हमारे पूर्वज ठण्ड के दिनोँ मेँ ही वहाँ जाते हैँ और अभी तो वो मौसम ही नहीँ आया है, हम हमारे वर्षोँ से चली आ रही इस परंपरा को नहीँ तोड़ सकते। मछुआरोँ का खतरा हो या न हो, हमेँ इस परंपरा का ध्यान रखना है।”
अतिबुद्धि नेँ गर्व से हँसते हुए कहा-” तुम लोग अज्ञानी हो, तुम्हेँ शास्त्रोँ का ज्ञान
नहीँ है। जो बादल गरजते हैँ वे बरसते नहीँ हैँ। फिर हम लोग एक हजार तरीकोँ से तैरना जानते हैँ, पानी के तल मेँ जाकर बैठनेँ की सामर्थ्यता है, हमारे पूंछ मेँ इतनी शक्ति है कि हम जालोँ को फाड़ सकती हैँ। वैसे भी कहा गया है कि सँकटोँ से घिरे हुए हो तो भी अपनेँ घर को छोड़कर परदेश चले जाना अच्छी बात नहीँ है। अव्वल तो वे मछुआरे आयेँगे नहीँ, आयेँगे तो हम तैरकर नीचे बैठ जायेँगी उनके जाल मेँ आयेँगे ही नहीँ, एक दो फँस भी गईँ तो पुँछ से जाल फाड़कर निकल जायेंगे। भाई! शास्त्रोँ और ज्ञानियोँ के वचनोँ के विरूध्द मैँ तो नहीँ जाऊँगी।”
व्यवहारिकबुद्धि नेँ कहा-” मैँ शास्त्रोँ के बारे मेँ नहीँ जानती , मगर मेरी बुद्धि कहती है कि मनुष्य जैसे ताकतवर और भयानक शत्रु की आशंका सिर पर हो, तो भागकर कहीँ छुप जाओ।” ऐसा कहते हुए वह अपनेँ अनुयायिओं को लेकर चल पड़ी।
मध्यमबुद्धि और अतिबुद्धि अपनेँ परँपरा और शास्त्र ज्ञान को लेकर वहीँ रूक गयीं । अगले दिन मछुआरोँ नेँ पुरी तैयारी के साथ आकर वहाँ जाल डाला और उन दोनोँ की एक न चली। जब मछुआरे उनके विशाल शरीर को टांग रहे थे तब व्यवहारिकबुद्धि नेँ गहरी साँस लेकर कहा-” इनके शास्त्र ज्ञान नेँ ही धोखा दिया। काश! इनमेँ थोड़ी व्यवहारिक बुद्धि भी होती।”
व्यवहारिक बुद्धि से हमारा आशय है कि किस समय हमेँ क्या करना चाहिए और जो हम कर रहे हैँ उस कार्य का परिणाम निकलनेँ पर क्या समस्यायेँ आ सकती हैँ, यह सोचना ही व्यवहारिक बुद्धि है। बोलचाल की भाषा में हम इसे कॉमन सेंस भी कहते हैं , और भले ही हम बड़े ज्ञानी ना हों मोटी- मोटी किताबें ना पढ़ीं हों लेकिन हम अपनी व्य्वयहारिक बुद्धि से किसी परिस्थिति का सामना आसानी से कर सकते हैं।

बूढ़े की चतुराई और साहस

प्राचीन जापान में एक सम्राट बहुत सनकी था। वह छोटी-छोटी गलतियों के लिए बड़ा दंड दे देता था। इसलिए प्रजा उससे बहुत भयभीत रहती थी। सम्राट के पास बीस फूलदानियों का एक अति सुंदर संग्रह था, जिस पर उसे बड़ा गर्व था। वह अपने महल में आने वाले अतिथियों को यह संग्रह अवश्य दिखाता था।

एक दिन फूलदानियों की नियमित सफाई के दौरान सेवक से एक फूलदानी टूट गई। सम्राट तो आगबबूला हो गया। उसने सेवक को फांसी पर लटकाने का हुक्म दे दिया। राज्य में खलबली मच गई। एक फूलदानी टूटने की इतनी बड़ी सजा पर सभी हैरान रह गए। सम्राट से रहम की अपील की गई, किंतु वह नहीं माना।

तब एक बूढ़ा आदमी दरबार में हाजिर होकर बोला, ‘सरकार! मैं टूटी हुई फूलदानी जोडऩे में सिद्धहस्त हूं। मैं उसे इस तरह जोड़ दूंगा कि वह पहले जैसी दिखाई देगी।’ सम्राट ने प्रसन्न होकर बूढ़े को अपनी शेष फूलदानियां दिखाते हुए कहा, ‘इन उन्नीस फूलदालियों की तरह यदि तुम टूटी हुई फूलदानी को भी बना दोगे तो मुंहमांगा इनाम पाओगे।’

सम्राट की बात समाप्त होते ही बूढ़े ने अपनी लाठी उठाई और सभी फूलदानियां तोड़ दीं। यह देखकर सम्राट क्रोधावेश में कांपते हुए बोला, ‘बेवकूफ! ये तुमने क्या किया?’ बूढ़े ने दृढ़ता के साथ कहा, ‘महाराज! इनमें से हर फूलदानी के पीछे एक आदमी की जान जाने वाली थी। तो मैंने अपने इंसान होने का फर्ज निभाते हुए उन्नीस लोगों के प्राण बचा लिए। अब आप शौक से मुझे फांसी की सजा दे सकते हैं।’

बूढ़े की चतुराई और साहस देखकर सम्राट को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने बूढ़े तथा सेवक दोनों को माफ कर दिया। बुराई से लडऩे के लिए साहस और आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है। यदि निर्भीकता से डटकर खड़े रहें तो बुराई का अंत अवश्य होता है।

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दूसरों की मदद करने पर खुद की मदद होती है…..

दूसरों की मदद करने पर खुद की मदद होती है…..

एक बार पचास लोगों का ग्रुप किसी सेमीनार में हिस्सा ले रहा था। सेमीनार शुरू हुए अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि-स्पीकर अचानक ही रुका और सभी पार्टिसिपेंट्स को गुब्बारे ¤ देते हुए बोला , “आप सभी को गुब्बारे पर इस मार्कर से अपना नाम लिखना है।” सभी ने ऐसा ही किया। अब गुब्बारों को एक दुसरे कमरे में रख दिया गया।
स्पीकर ने अब सभी को एक साथ कमरे में जाकर पांच मिनट के अंदर अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने के लिए कहा। सारे पार्टिसिपेंट्स तेजी से रूम में घुसे और पागलों की तरह अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने लगे। पर इस अफरा-तफरी में किसी को भी अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिल पा रहा था…

5 पांच मिनट बाद सभी को बाहर बुला लिया गया। स्पीकर बोला ,  “अरे! क्या हुआ , आप सभी खाली हाथ क्यों हैं ? क्या किसी को अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिला ?”  नहीं !……..हमने बहुत ढूंढा पर हमेशा किसी और के नाम का ही गुब्बारा हाथ आया…”, एक पार्टिसिपेंट कुछ मायूस होते हुए बोला।

“कोई बात नहीं , आप लोग एक बार फिर कमरे में जाइये , पर इस बार जिसे जो भी गुब्बारा मिले उसे अपने हाथ में ले और उस व्यक्ति का नाम पुकारे जिसका नाम उस पर लिखा हुआ है।  स्पीकर ने निर्दश दिया।…..एक बार फिर सभी पार्टिसिपेंट्स कमरे में गए, पर इस बार सब शांत थे , और -कमरे में किसी तरह की अफरा- तफरी नहीं मची हुई थी। सभी ने एक दुसरे को उनके नाम के गुब्बारे दिए और तीन मिनट में ही बाहर निकले आये।

स्पीकर ने गम्भीर होते हुए कहा , बिलकुल यही चीज हमारे जीवन में भी हो रही है। हर कोई अपने लिए ही जी रहा है , उसे इससे कोई मतलब नहीं कि वह किस तरह औरों की मदद कर सकता है , वह तो बस पागलों की तरह अपनी ही खुशियां ढूंढ रहा है , पर बहुत ढूंढने के बाद भी उसे कुछ नहीं मिलता ,

दोस्तों हमारी ख़ुशी दूसरों की ख़ुशी में छिपी हुई है। जब तुम औरों को उनकी खुशियां देना सीख जाओगे तो अपने आप ही तुम्हे तुम्हारी खुशियां मिल जाएँगी।

गंवाने की आदत

गंवाने की आदत…….

कहते हैं कि इराक के पुराने शहर सिकंदरिया के पुस्तकालय में जब भीषण आग लगी, तो कमोबेश सारी किताबें जल गईं। कुछ एक किताबें ही बचीं। उनमें से एक किसी आदमी ने खरीद ली। वह मामूली रूप से शिक्षित था।

उसे किताब में एक पर्ची मिली। पर्ची पर पारस पत्थर के बारे में लिखा था- पारस पत्थर एक छोटा-सा कंकड़ है। हजारों दूसरे कंकड़ों के साथ एक सागर तट पर पड़ा है। उसकी पहचान यह है कि वह अन्य कंकड़ों की तुलना में थोड़ा गर्म महसूस होता है।

वह आदमी पारस पत्थर ढूंढने के लिए समुद्र की ओर चल पड़ा। उसे लगा कि यदि वह कंकड़ों को उठा-उठाकर देखता रहा, तो एक ही कंकड़ कई बार उठाने में आ जाएगा, और काफी समय नष्ट होगा। इसलिए वह कंकड़ उठाता, उसे परखता और समुद्र में फेंक देता।

ऐसा करते-करते वर्ष बीत गए। एक दिन उसने एक कंकड़ उठाया। वह गर्म था। इससे पहले कि वह कुछ सोचता, आदत से मजबूर उसने पत्थर समुद्र में फेंक दिया। फेंकते ही उसे लगा कि कितनी बड़ी गलती हो गई।

वर्षों तक प्रतिदिन हजारों कंकड़ों को समुद्र में फेंकते रहने की आदत हो जाने के कारण उसने उस कंकड़ को भी समुद्र में फेंक दिया, जिसकी तलाश में उसने  अपना सब कुछ छोड़ दिया था। ऐसा ही हम लोग अपने सामने मौजूद अवसरों के साथ भी करते हैं। उसे पहचानने की एक मामूली चूक से हम मौका गंवा देते हैं।

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एक बाल्टी दूध

एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के बीचो बीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक – एक बाल्टी दूध उस कुएं में डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और लोगों का मरना बन्द हो जायेगा। राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है ।

अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे अगर मै अकेली एक बाल्टी पानी डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है। दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी। राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दूर नहीं हुई और लोग अभी भी मर रहे हैं…

दरअसल ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में आया था वही विचार पूरे राज्य के लोगों के मन में आ गया और किसी ने भी कुंए में दूध नहीं डाला।…….

मित्रों , जैसा इस कहानी में हुआ वैसा ही हमारे जीवन में भी होता है। जब भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे लोगों को मिल कर करना होता है तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और हमारी इसी सोच की वजह से स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं। अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो पूरे देश मेंबर ऐसा बदलाव ला सकते हैं जिसकी आज हमें ज़रूरत है।

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स्वास्थ्य

स्वास्थ्य : कमर दर्द, जोड़ों के दर्द (आर्थराइटिस) और वजन घटाने के लिए भोजन :

* अंकुरित आहार जैसे गेहूं, मूंग, मोठ व चने का सेवन खाने में ज्यादा करें।
* हरी पत्तियों वाली सब्जियां ज्यादा खाएं जैसे साग, सरसों, बथुआ, पालक, हरा धनिया, मैथी, बीन्स आदि।
* सभी हरी सब्जियां जैसे घीया लौकी, तोरी, टिन्डे, कद्दू, बैंगन, करेले आदि का सेवन करें। * खाने में सोयाबीन की मात्रा बढ़ा दें। सोयाबीन की बड़ी दाल के रूप में या आटे के रूप में भी ले सकते हैं। सोयाबीन का आटा गेहूं आटे के साथ में लें।
* रोटी के लिए आटे में गेहूं व सोयाबीन या गेहूं व दाल का प्रयोग करें।
* खाने में दालों का सेवन ज्यादा से ज्यादा मात्रा में करें।
* खाना बनाते समय कोई भी घी, तेल, रिफाइन्ड या चिकनाई का प्रयोग न करें। उसके स्थान पर टमाटर की ग्रेवी का प्रयोग करें तथा मसाले स्वादानुसार डालें। जीरे को अन्य मसालों की तरह पीसकर उपयोग करें।
* खाने से पहले भरपूर मात्रा में पानी पीयें, फिर पेटभर कर सलाद खायें जैसे खीरा, टमाटर, मूली, गाजर, पत्ता गोभी, पपीता, बेर, अमरूद, तंरबूज, खरबूज व उसमें अंकुरित अनाज भी मिला सकते हैं। इसके बाद ही पका हुआ खाना रोटी, दाल, सब्जी आदि को खायें।
* खाना बनाने के लिए हमेशा कड़ाही के स्थान पर प्रेशर कुकर का प्रयोग करें। इससे भोजन के विटामिन नष्ट होने से बच जायेंगे।
* प्रतिदिन आठ से दस लिटर पानी का सेवन करें।
* दालों में सभी दालें छाले, राजमां, चना, मटर, सेम, मूंगफली आदि खा सकते हैं।
क्या न लें :
* जिस फल को जीभ पर रखने पर मिठास का एहसास हो, वो फल कम खायें जैसे आम, चीकू सेब, केला व अंगुर।
* फलों के जूस का प्रयोग कम करें।
* ड्राई फू्रट सूखे मेवे उचित मात्रा में खायें।
* किसी भी नशीले पदार्थ का सेवन कभी न करें जैसे तम्बाकू गुटखा, सगरेट, शराब।
* सभी जंक फूड जैसे पीजा, बर्गर, चाउमीन तथा चाय, कोल्ड ड्रिंक, कोक, कॉफी आदि न लें।
* जानवरों से उत्पन्न कोई भी वस्तु जैसे अण्डा, मांस-मछली आदि तथा दूध व दूध से बनी सभी चीजें जैसे घी, पनीर, दही, मक्खन आदि का प्रयोग कम करें।
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छाछ (मठ्ठा ,तक्र )-
दही को मथकर छाछ बनाया जाता है | छाछ अनेक शारीरिक दोषों को दूर करता है तथा आहार के रूप में महत्वपूर्ण है | छाछ या मठ्ठा शरीर के विजातीय तत्वों को बाहर निकालकर रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता की वृद्धि करता है | गाय के दूध से बानी छाछ सर्वोत्तम होती है | छाछ में घी नहीं होना चाहिए तथा यह खट्टी नहीं होनी चाहिए |
जिन्हे भूख न लगती हो या भोजन न पचता हो,खट्टी-खट्टी डकारें आती हों या पेट फूलता हो उनके लिए छाछ का सेवन अमृत के सामान लाभकारी होता है | छाछ गैस को दूर करती है,अतः मल विकारों और पेट की गैस में छाछ का सेवन लाभकारी होता है | यह पित्तनाशक होती है और रोगी को ठंडक और पोषण देती है |
विभिन्न रोगों में छाछ से उपचार-
*- छाछ में काला नमक और अजवायन मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है |
*- अपच में छाछ एक सर्वोत्तम औषधि है | गरिष्ठ वस्तुओं को पचाने में भी छाछ बहुत लाभकारी है | छाछ में सेंधानमक,भुना हुआ जीरा तथा काली मिर्च पीसकर , मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण दूर हो जाता है |
*- छाछ में शक्कर और काली मिर्च मिलाकर पीने से पित्त के कारण होने वाला पेट दर्द ठीक हो जाता है |
*- छाछ में नमक डालकर पीने से लू लगने से बचा जा सकता है |
*- एक गिलास छाछ में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर प्रतिदिन पीने से पीलिया में लाभ होता है |
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मसूर -
मसूर का प्रयोग दाल के रूप में प्रायः समस्त भारतवर्ष में किया जाता है | इससे सभी अच्छी तरह परिचित हैं | समस्त भारत में मुख्यतः शीत जलवायु वाले क्षेत्रों में, तक उष्णकटिबंधीय एवं शीतोष्णकटिबन्धीय १८०० मीटर ऊंचाई तक इसकी खेती की जाती है |
यह १५-७५ सेमी ऊँचा,सीधा,मृदु-रोमिल,शाकीय पौधा होता है | इसके पुष्प छोटे,श्वेत,बैंगनी अथवा गुलाबी वर्ण के होते हैं | इसकी फली चिकनी,कृष्ण वर्ण की,६-९ मिलीमीटर लम्बी ,आगरा भाग पर नुकीली तथा हरे रंग की होती है | प्रत्येक फली में २,गोल,चिकने,४ मिमी व्यास के,चपटे तथा हलके गुलाबी से रक्ताभ वर्ण के बीज होते हैं | इन बीजों की दाल बनाकर खायी जाती है | इसका पुष्पकाल दिसंबर से जनवरी तथा फलकाल मार्च से अप्रैल तक होता है |
इसके बीज में कैल्शियम,फॉस्फोरस,आयरन,सोडियम,पोटैशियम,मैग्नीशियम,सल्फर,क्लोरीन,आयोडीन,एल्युमीनियम,कॉपर,जिंक,प्रोटीन,कार्बोहायड्रेट एवं विटामिन D आदि तत्व पाये जाते हैं | मसूर के औषधीय गुण -
*- मसूर की दाल को जलाकर,उसकी भस्म बना लें,इस भस्म को दांतों पर रगड़ने से दाँतो के सभी रोग दूर होते हैं |
*- मसूर के आटे में घी तथा दूध मिलाकर,सात दिन तक चेहरे पर लेप करने से झाइयां खत्म होती हैं |
*- मसूर के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से गले की सूजन तथा दर्द में लाभ होता है |
*- मसूर की दाल का सूप बनाकर पीने से आँतों से सम्बंधित रोगों में लाभ होता है |
*- मसूर की भस्म बनाकर,भस्म में भैंस का दूध मिलाकर प्रातः सांय घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है |
*- मसूर दाल के सेवन से रक्त की वृद्धि होती है तथा दौर्बल्य का शमन होता है |
*- मसूर की दाल खाने से पाचनक्रिया ठीक होकर पेट के सारे रोग दूर हो जाते हैं |

*आरोग्यं-

रुद्राक्ष -
रुद्राक्ष विश्व में नेपाल,म्यान्मार,इंग्लैंड,बांग्लादेश एवं मलेशिया में पाया जाता है | भारत में यह मुख्यतः बिहार,बंगाल,मध्य-प्रदेश,आसाम एवं महाराष्ट्र में पाया जाता है | विद्वानों का कथन है कि रुद्राक्ष की माला धारण करने से मनुष्य शरीर के प्राणों का नियमन होता है तथा कई प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक विकारों से रक्षा होती है | इसकी माला को पहनने से हृदयविकार तथा रक्तचाप आदि विकारों में लाभ होता है |
यह १८-२० मीटर तक ऊँचा,माध्यम आकार का सदाहरित वृक्ष होता है | इसके फल गोलाकार,१.३-२ सेमी व्यास के तथा कच्ची अवस्था में हरे रंग के होते हैं | इसके बीजों को रुद्राक्ष कहा जाता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल फ़रवरी से जून तक होता है|
आइये जानते हैं रुद्राक्ष के कुछ औषधीय प्रयोगों के विषय में -
*- रुद्राक्ष का शरीर से स्पर्श उत्तेजना,रक्तचाप तथा हृदय रोग आदि को नियंत्रित करता है |
*- रुद्राक्ष को पीसकर उसमें शहद मिलाकर त्वचा पर लगाने से दाद में लाभ होता है |
*- रुद्राक्ष को दूध के साथ पीसकर चेहरे पर लगाने से मुंहासे नष्ट होते हैं |
*- रुद्राक्ष के फलों को पीसकर लगाने से दाह (जलन) में लाभ होता है |
*- यदि बच्चे की छाती में कफ जम गया हो तो रुद्राक्ष को घिसकर शहद में मिलाकर ५-५ मिनट के बाद रोगी को चटाने से उल्टी द्वारा कफ निकल जाता है |
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फिटकरी -
फिटकरी आमतौर पर सब घरों में प्रयोग होती है | यह लाल व सफ़ेद दो प्रकार की होती है | अधिकतर सफ़ेद फिटकरी का प्रयोग ही किया जाता है | यह संकोचक अर्थात सिकुड़न पैदा करने वाली होती है | फिटकरी में और भी बहुत गुण होते हैं | आज हम आपको फिटकरी के कुछ गुणों के विषय में बताएंगे -
*- यदि चोट या खरोंच लगकर घाव हो गया हो और उससे रक्तस्त्राव हो रहा हो तो घाव को फिटकरी के पानी से धोएं तथा घाव पर फिटकरी का चूर्ण बनाकर बुरकने से खून बहना बंद हो जाता है |
*- आधा ग्राम पिसी हुई फिटकरी को शहद में मिलाकर चाटने से दमा और खांसी में बहुत लाभ मिलता है |
*- भुनी हुई फिटकरी १-१ ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ लेने से खून की उलटी बंद हो जाती है |
*- प्रतिदिन दोनों समय फिटकरी को गर्म पानी में घोलकर कुल्ला करें ,इससे दांतों के कीड़े तथामुँहकी बदबू ख़त्म हो जाती है |
*- एक लीटर पानी में १० ग्राम फिटकरी का चूर्ण घोल लें | इस घोल से प्रतिदिन सिर धोने से जुएं मर जाती हैं |
*- दस ग्राम फिटकरी के चूर्ण में पांच ग्राम सेंधा नमक मिलाकर मंजन बना लें | इस मंजन के प्रतिदिन प्रयोग से दाँतो के दर्द में आराम मिलता है |
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