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Tuesday 26 January 2016

सफलता ?

दोस्तों। ...... एक बार आप का फिर से स्वागत है आपके अपने ब्लॉग में। 



  • सफलता और मौत दोनों आसानी से नहीं प्राप्त होती। इन्हें प्राप्त करने के लिए या तो अपने शरीर को कष्ट पहुँचाना पड़ता हैं या फिर भाग्य  से ही मिलती हैं ।
  • जीवन एक छोटा शब्द हैं पर इसकी गहराई मे अनेको रत्न और विष व्यात हैं।

हम सब ने नकारात्मक चरित्र के बारे में दिए जाने वाले आम बहानों को सुना है : "में तो ऐसा ही हूँ. में इसके बारे में क्या कर सकता हूँ ? में बस एक आलसी व्यक्ति हूँ. " हिन्दुइज्म सिखाता है क़ी जिस चरित्र के साथ इस जीवन में हमारा जन्म हुआ है वेह हमारे पुराने जन्मों के कुल कर्मों के जोड़ का परिणाम है. कुछ लोग जन्म से ही स्पष्ट रूप से धर्मनिष्ठ होते हैं, दुसरे मिश्रित प्रकृति के होते हैं और कुछ अन्य आत्म केन्द्रित एवं कुटिल. हालाँकि हिन्दुइज्म यह भी सिखाता है कि हम अपने चरित्र के गुणों को परिवर्तित कर सकते हैं , जिनके साथ हमारा जन्म हुआ था, आत्म सोच विचार एवं आत्म प्रयास के द्वारा, उनको देख कर और अपने विचारों पर नियंत्रण करके एवं वर्तमान में कर्म करके, विशेष रूप से सकारात्मक विचारों एवं कार्यों की पुनरावृति के द्वारा. जितना ज्यादा हम चरित्र के गुण को व्यक्त एवं उस पर सोच विचार करेंगे , जिस गुण को हम बढ़ाना चाहते हैं , उतना ही मजबूत वो बन जायेगा.
इस विचार को स्वीकारना कि हम आलस्य जैसे नकारात्मक चरित्र के गुण को बदल सकते हैं, एक आवश्यक पहला कदम होगा. एक बार इस परिपेक्ष को ध्यान में रखेंगे , तब निम्न लिखित चार पदों वाला दृष्टिकोण अपनाना , काफी उपयोगी होगा, इसके विपरीत सकारात्मक चरित्र के गुणों के विकास के लिए :
  1. सकारात्मक गुणवत्ता को समझना
  2. इसकी अभिव्यक्ति को पहचानना
  3. इसके लाभों को महसूस करना
  4. इसकी अभिव्यक्ति का अभ्यास करना
इस प्रक्रिया के उपयोग में, हम पतंजलि के योग सूत्र के निम्नलिखित सिद्धांतों को ध्यान में रख सकते हैं : "निम्नस्तरीय सोच को हटाने के लिए , उसके विपरीत सोच को पोषित किया जाना चाहिए, अस्वास्थ्यकर विचार, जैसे की किसी को नुकसान पहुँचाना या और कुछ - चाहे किया हो , किया जाना हो, या जिसकी मंजूरी दे दी हो , चाहे लालच से उपजा हो , गुस्से या मोह से, चाहे हल्के, मध्यम या अतिवाद से - कभी अज्ञानता और पीड़ा में पकने से रुकता नहीं. इसलिए हमें इसके विपरीत को पोषित करना चाहिए."
चलो देखते हैं कैसे इस चार कदम की प्रक्रिया को आलस्य को मेहनत में बदलने के लिए उपयोग किया जाये. पहले: सकारात्मक गुण को समझें. सुनिश्चित करें कि आपको जो चरित्र का गुण पोषित किया जाना चाहिए उसकी स्पष्ट जानकारी हो. इसको करने का एक अच्छा तरीका होगा कि इसको आप अपने शब्दों में परिभाषित करें. आइये हम बहुत लगन से कार्य करने को "मेहनती, जो किसी परियोजना को खत्म करने हेतु लम्बे समय तक कार्य कर सकता हो " के रूप में परिभाषित करें. इसका विपरीत आलस्य होगा, "कड़ी मेहनत ना करना , बिना काम के रहने को चुनना. " तदोपरांत सकारात्मक गुण पर ध्यान लगायें.
दूसरा : इसकी अभिव्यक्ति को पहचानें. सकारात्मक विचारों , शब्दों, दृष्टिकोण और व्यवहार का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों कि एक सूचि बनाएं. इसके बाद एक अन्य सूचि विपरीत गुणों कि बनाएं.
मेहनत               आलस्य
             अभी कार्य करें                  कार्य को टाल दें
            कार्य ख़त्म करने के लिए देर तक कार्य करें                 जल्दी से जल्दी रुक जायें
            अधिकतम उत्पादकता                  कम से कम करो


तीसरा : इसके लाभ को महसूस करें. इस गुण के फायदों कि लिस्ट बनाएं. इसमें शामिल कर सकते हैं अंतर्दृष्टि को जो इससे समस्याएं होती हों जब इसके विपरीत कार्य किया जाये.
  • मेहनत
  • परिवार एवं समुदाय कि सेवा करने की बेहतर क्षमता
  • कैरिएर में उन्नति के अवसर
  • सहयोगियों से प्रशंसा
  • बढ़ा हुआ आत्म सम्मान
  • आलोचना से बचाव



दोस्तों जीवन बहुत अनमोल है। .... आप अपने समय को अच्छे कार्यो में लगाये और अपने परिवार के साथ हमेशा खुशहाल रहें। ..... 



धन्यवाद 
अजय पाण्डेय 

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