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Friday 13 May 2016

साहसी मंजूनाथ–परमार्थी बनें

साहसी मंजूनाथ–परमार्थी बनें….

सच्चाई, ईमानदारी, साहस,….ये शब्द हमें किताबी लगते है. दरअसल, हमने ये मान लिया  है  कि किताबी बाते आचरण में उतारने के लिए नहीं होती है, बल्कि केवल परीक्षा पास कर अच्छी नौकरी पा लेने और अपनी शिक्षा को भूल जाने के लिए होती है….यह हमारी स्वार्थपरक सोच है.हम सिर्फ हमारे भौतिक सुख के बारे में ही सोचते है.इसके अतिरिक्त हमें दुसरो के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं मिलता….लेकिन ये सोच ठीक नहीं. हमें प्राणिमात्र, समाज, देश के लिए अवश्य सोचना चाहिए.ये ही अंतर है सामान्य और महान लोगो में….जितने भी महान लोग हुए है उनकी सोच प्रोंमुखी रही है. सामान्य से महान बनने की यात्रा के बीच इसी विचार का उदय महत्वपूर्ण होता है….

मंजूनाथ का उदाहरण हम ले सकते है…प्रभावशाली मंजूनाथ ने पढाई को कभी अच्छी नौकरी पाकर अच्छी कमाई  की वजह नहीं  समझा. उसके लिए देश की भलाई सर्वोपरि थी. उन्हें अच्छी नौकरी मिली , साधारण इन्सान की तरह यदि ये चाहते तो चैन से नौकरी कर सकते थे. लेकिन उन्होंने सच्चाई और ईमानदारी से कभी समझौता  नहीं किया.

तेल-माफियाओं के गोरखधंधों को वे सहन नहीं कर सके. और उन्होंने एक इमानदार अधिकारी के रूप में उनके विरुद्ध मोर्चा खोल दिया. अंततः शक्तिशाली माफिया ने उनकी हत्या कर दी… संघर्स, सहस, ईमानदारी, जैसे गुण ही थे कि मन्नजूथ लोगों के लिए  आदर्श बन गए. लोगों को आत्मविश्लेषण करना चाहिए और अपने भीतर छिपे मंजूनाथ को जगाना चाहिए.

हम सब में मंजूनाथ है, हम सब में सच्चाई, ईमानदारी, और साहस  के गुण मौजूद है, लेकिन हम अपनी आत्मोंमुखी सोच के कारण उसे उभरने का मौका नहीं देते…समाज में बुराइयों को देखकर भी नज़रन्दाज कर देते है और समाज के दोषी बन जाते है….तभी तो उनपर एक फिल्म बनाई गई है —-”मंजूनाथ..ईडियट था साला”….

दरअसल एक अच्छी नौकरी पा लेना, इंजिनियर या आईऐएस  बन कर अच्छी कमाई करने लगना ही हमारा लक्ष्य नहीं होना चाहिए.असली हीरो वही होता है जो, मुश्किलों से जूझकर समाज को बेहतर बनाने की हरसंभव कोशिश करता है…..लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि नकारात्मक सोच वाले कुछ लोग इन गुणों को अवगुणों और मुर्खता में शुमार करने लगे है…तमाम लोगो को आपने कहते सुना होगा -’जमाना ईमानदारी का नहीं’…

कई लोगों को ईमानदार बनने  पर हरिश्चंद्र की औलाद जैसे जुमले बोलते हुए भी देखा गया है. दरअसल ये सवार्थ के जुमले है, परमार्थ के नहीं. परमार्थ हमेशा लीक को तोड़कर नई रह बनाता है….. महावीर, बुध , नानक, स्वामी विवेकानन्द , महात्मा गाँधी आदि सभी परमार्थियों ने  लोगों को जीवन का सही मार्ग बताया….आज भी लोग भ्रमित है , उन्हें अपने  विचारों को बदलना होगा…….हमें भी समझना होगा कि समाज हमसे ही बनता है, जैसे हम होंगे समाज वैसा ही होगा. क्यों ना हम अपने  भीतर मंजूनाथ जैसा जज़्बा जगाएं, तभी हम समाज की बुराइयों से पार पा सकेंगे…..

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