magic

Friday 13 May 2016

हौंसला


एक ट्रक में मारबल का सामान जा रहा था,
उसमे टाईल्स भी थी , और
भगवान की मूर्ती भी थी ...!!

रास्ते में टाईल्स ने मूर्ती से पूछा ..
"भाई ऊपर वाले ने हमारे साथ ऐसा भेद-भाव क्यों किया है?"

मूर्ती ने पूछा, "कैसा भेद भाव?"

टाईल्स ने कहा,

"तुम भी पथ्थर मै भी पथतर ..!!
तुम भी उसी खान से निकले ,
मै भी..
तुम्हे भी उसी ने ख़रीदा बेचा , मुझे भी..

तुम भी मन्दिर में जाओगे, मै भी ...
पर वहां तुम्हारी पूजा होगी ...

और मै पैरो तले रौंदा जाउंगा.. ऐसा क्यों?"

मूर्ती ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया,

"तुम्हे जब तराशा गया,
तब तुमसे दर्द सहन नही हुवा;

और तुम टूट गये टुकड़ो में बंट गये ...
और मुझे जब तराशा गया तब मैने दर्द सहा,

मुझ पर लाखो हथोड़े बरसाये गये ,
मै रोया नही...!!

मेरी आँख बनी, कान बने, हाथ बना, पांव बने..
फिर भी मैं टूटा नही .... !!

इस तरहा मेरा रूप निखर गया ...
और मै पूजनीय हो गया ... !!

तुम भी दर्द सहते तो तुम भी पूजे जाते..

मगर तुम टूट गए ...

और टूटने वाले हमेशा पैरों तले रोंदे जाते है..!!"

# मोरल #

भगवान जब आपको तराश रहा हो तो,
टूट मत जाना ...
हिम्मत मत हारना ...!!
अपनी रफ़्तार से आगे बढते जाना,
मंजिल जरूर मिलेगी .... !!

सुन्दर पंक्तियाँ:

मुश्किलें केवल बहतरीन लोगों
के हिस्से में ही आती हैं...

क्यूंकि वो लोग ही उसे बेहतरीन
तरीके से अंजाम देने की ताकत
रखते हैं..!!

"रख हौंसला वो मंज़र भी आयेगा;
प्यासे के पास चलकर समंदर भी
आयेगा..!

थक कर ना बैठ, ऐ मंजिल के मुसाफ़िर;

मंजिल भी मिलेगी और
जीने का मजा भी आयेगा...!!"

भक्ति और विश्वास

भक्ति और विश्वास की सत्य एवं आश्चर्यचकित कर देने वाली कथा

एक महिला थी जिसका नाम था आनंदीबाई।
देखने में तो वह इतनी कुरूप थी कि देखकर लोग डर जायें।

उसका विवाह हो गया, विवाह से पूर्व उसके पति ने उसे नहीं देखा था।
विवाह के पश्चात् उसकी कुरूपता को देखकर उसका पति उसे पत्नी के रूप में न रख सका एवं उसे छोड़कर उसने दूसरा विवाह रचा लिया।

आनंदी ने अपनी कुरूपता के कारण हुए अपमान को पचा लिया एवं निश्चय किया कि ‘अब तो मैं गोकुल को ही अपनी ससुराल बनाऊँगी।’

वह गोकुल में एक छोटे से कमरे में रहने लगी। घर में ही मंदिर बनाकर आनंदीबाई श्रीकृष्ण की भक्ति में मस्त रहने लगी। आनंदीबाई सुबह-शाम घर में विराजमान श्रीकृष्ण की मूर्ति के साथ बातें करती, उनसे रूठ जाती, फिर उन्हें मनाती…. और दिन में साधु-सन्तों की सेवा एवं सत्संग-श्रवण करती। इस प्रकार कृष्ण भक्ति एवं साधु-सन्तों की सेवा में उसके दिन बीतने लगे।

एक दिन की बात है गोकुल में गोपेश्वरनाथ नामक जगह पर श्रीकृष्ण-लीला का आयोजन निश्चित किया गया था। उसके लिए अलग-अलग पात्रों का चयन होने लगा, पात्रों के चयन के समय आनंदीबाई भी वहाँ विद्यमान थी। अंत में कुब्जा के पात्र की बात चली।

उस वक्त आनंदी का पति अपनी दूसरी पत्नी एवं बच्चों के साथ वहीं उपस्थित था, अतः आनंदीबाई की खिल्ली उड़ाते हुए उसने आयोजकों के आगे प्रस्ताव रखाः- “सामने यह जो महिला खड़ी है वह कुब्जा की भूमिका अच्छी तरह से अदा कर सकती है, अतः उसे ही कहो न, यह पात्र तो इसी पर जँचेगा, यह तो साक्षात कुब्जा ही है।”

आयोजकों ने आनंदीबाई की ओर देखा, उसका कुरूप चेहरा उन्हें भी कुब्जा की भूमिका के लिए पसंद आ गया। उन्होंने आनंदीबाई को कुब्जा का पात्र अदा करने के लिए प्रार्थना की।

श्रीकृष्णलीला में खुद को भाग लेने का मौका मिलेगा, इस सूचना मात्र से आनंदीबाई भावविभोर हो उठी। उसने खूब प्रेम से भूमिका अदा करने की स्वीकृति दे दी। श्रीकृष्ण का पात्र एक आठ वर्षीय बालक के जिम्मे आया था।

आनंदीबाई तो घर आकर श्रीकृष्ण की मूर्ति के आगे विह्वलता से निहारने लगी एवं मन-ही-मन विचारने लगी कि ‘मेरा कन्हैया आयेगा… मेरे पैर पर पैर रखेगा, मेरी ठोड़ी पकड़कर मुझे ऊपर देखने को कहेगा….’

वह तो बस, नाटक में दृश्यों की कल्पना में ही खोने लगी। आखिरकार श्रीकृष्णलीला रंगमंच पर अभिनीत करने का समय आ गया। लीला देखने के लिए बहुत से लोग एकत्रित हुए।

श्रीकृष्ण के मथुरागमन का प्रसंग चल रहा था, नगर के राजमार्ग से श्रीकृष्ण गुजर रहे हैं… रास्ते में उन्हे कुब्जा मिली….

आठ वर्षीय बालक जो श्रीकृष्ण का पात्र अदा कर रहा था उसने कुब्जा बनी हुई आनंदी के पैर पर पैर रखा और उसकी ठोड़ी पकड़कर उसे ऊँचा किया।

किंतु यह कैसा चमत्कार………………

कुरूप कुब्जा एकदम सामान्य नारी के स्वरूप में आ गयी…..

वहाँ उपस्थित सभी दर्शकों ने इस प्रसंग को अपनी आँखों से देखा।

आनंदीबाई की कुरूपता का पता सभी को था, अब उसकी कुरूपता बिल्कुल गायब हो चुकी थी।

यह देखकर सभी दाँतो तले ऊँगली दबाने लगे।

आनंदीबाई तो भावविभोर होकर अपने कृष्ण में ही खोयी हुई थी…

उसकी कुरूपता नष्ट हो गयी यह जानकर कई लोग कुतुहलवश उसे देखने के लिए आये। फिर तो आनंदीबाई अपने घर में बनाये गये मंदिर में विराजमान श्रीकृष्ण में ही खोयी रहतीं। यदि कोई कुछ भी पूछता तो एक ही जवाब मिलता “मेरे कन्हैया की लीला कन्हैया ही जाने….”

आनंदीबाई ने अपने पति को धन्यवाद देने में भी कोई कसर बाकी न रखी। यदि उसकी कुरूपता के कारण उसके पति ने उसे छोड़ न दिया होता तो श्रीकृष्ण में उसकी इतनी भक्ति कैसे जागती? श्रीकृष्णलीला में कुब्जा के पात्र के चयन के लिए उसका नाम भी तो उसके पति ने ही दिया था, इसका भी वह बड़ा आभार मानती थी।

प्रतिकूल परिस्थितियों एवं संयोगों में शिकायत करने की जगह प्रत्येक परिस्थिति को भगवान की ही देन मानकर धन्यवाद देने से प्रतिकूल परिस्थिति भी उन्नतिकारक हो जाती है।

अभिवादन

अभिवादन

हम बड़ों के पैर क्यों छूते है ?…हम नमस्ते क्यों करते है ?
हम नमस्ते क्यों करते है ?
शास्त्रों में पाँच प्रकार के अभिवादन बतलाये गए है जिन में से एक है “नमस्कारम”।
नमस्कार को कई प्रकार से देखा और समझा जा सकता है। संस्कृत में इसे विच्छेद करे तो हम पाएंगे की नमस्ते दो शब्दों से बना है नमः + ते।
नमः का मतलब होता है मैं (मेरा अंहकार) झुक गया। नम का एक और अर्थ हो सकता है जो है न + में यानी की मेरा नही। आध्यात्म की दृष्टी से इसमें मनुष्य दुसरे मनुष्य के सामने अपने अंहकार को कम कर रहा है। नमस्ते करते समय में दोनों हाथो को जोड़ कर एक कर दिया जाता है जिसका अर्थ है की इस अभिवादन के बाद दोनों व्यक्ति के दिमाग मिल गए या एक दिशा में हो गये।

हम बड़ों के पैर क्यों छूते है ?
भारत में बड़े बुजुर्गो के पाँव छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। ये दरअसल बुजुर्ग, सम्मानित व्यक्ति के द्वारा किए हुए उपकार के प्रतिस्वरुप अपने समर्पण की अभिव्यक्ति होती है। अच्छे भावः से किया हुआ सम्मान के बदले बड़े लोग आशीर्वाद देते है जो एक सकारात्मक ऊर्जा होती है।

आदर के निम्न प्रकार है :
* प्रत्युथान : किसी के स्वागत में उठ कर खड़े होना
* नमस्कार : हाथ जोड़ कर सत्कार करना
* उपसंग्रहण : बड़े, बुजुर्ग, शिक्षक के पाँव छूना
* साष्टांग : पाँव, घुटने, पेट, सर और हाथ के बल जमीन पर पुरे लेट कर सम्मान करना
* प्रत्याभिवादन : अभिनन्दन का अभिनन्दन से जवाब देना

किसे किसके सामने किस विधि से सत्कार करना है ये शास्त्रों में विदित है। उदाहरण के तौर पर राजा केवल ऋषि मुनि या गुरु के सामने नतमस्तक होते थे।

लालाजी और गरीब औरत

लालाजी और गरीब औरत

गाँव की दुकान पर ग्वाले की लड़की जा कर कहती है—–
लाला जी माँ ने एक किलो चीनी मंगाई है……..!
ठीक है; लाला ने चीनी देते हुए
पूछा——-”घी बनाया आज…….?
“”जी लाला जी”"
अच्छा एक किलो ले आना………!
लड़की घर जा कर कहती है:—–
“लाला जी ने घी मंगवाया है”
एक किलो घी तोल कर लाला की दुकान पर पहुंचा दिया गया…….!
ज़रा ही देर में लाला जी ग्वाले के घर आ
धमकते हैं………. गुस्से से लाल पीले, लड़की के सामने
आ कर कहते है, —-बुला अपनी माँ को……..!-
“क्या हुआ लाला, इतने नाराज क्यों हो रहे हो?” लड़की की माँ बोली
-अरे मैं ही मिला बेवकूफ़ बनाने के लिए……..!!!!!
-लाला कुछ बताओगे भी ?
-एक किलो घी मंगवाया था, आठ सौ ग्राम निकला……!
लालाजी इतने जोर- जोर से चिल्ला रहे थे कि गावं के लोग उत्सुकतावश रुक कर देखने लगे की क्या हुआ है?
और देखते ही देखते भीड़ इकठ्ठा हो गई…..
लड़की की माँ लालाजी को कुछ कहना चाह रही थी मगर गुस्से में लालाजी सिर्फ उसको बुरा-भला कह रहे थे……
झगडा बढ़ता देख कुछ लोगों ने मिल बैठ कर मामले को निपटाने की सलाह दी…… मगर लालाजी ने पंचायत की धमकी देते हुए कहा की अब यह फैसला पंचायत ही करेगी…..

अगले दिन गांव की पंचायत बैठी और सारा मामला सुना लालाजी बार-बार औरत को बेईमान कह रहे थे और पंचायत से उस औरत पर जुर्माना व सजा की अपील कर रहे थे…..
सरपंच ने लड़की की माँ से पूछा की लालाजी जो कह रहें है क्या वह सही है?…..
औरत ने जवाब दिया—
लालाजी जो कह रहे है उस का तो मुझे पता नहीं मगर मैंने घी कम नहीं तोला….
तो फिर घी कम कैसे हो गया? औरत से सवाल किया गया……
वो बेहद मासूमियत से बोली—घी तोलते वक्त एक किलो का ‘बाट’ ना जाने कहाँ गुम हो गया था मैंने ढूंडा भी मगर मिला ही नहीं…..
तभी मुझे ध्यान आया कि बिटिया अभी-अभी एक किलो चीनी लेकर आई है लालाजी के यहाँ से…….
सो मैंने उसी चीनी को तराजू में ‘बाट’ की जगह रख कर तोल दिया और घी भिजवा दिया…..!!!!!!!!
अब ये तो लालाजी जाने उन्होंने कितनी चीनी तोली थी….!!!
मै वो चीनी अपने साथ ही लेकर आई हूँ….
झगडे में ज्यों की त्यों अभी भी रखी है हम  इसे इस्तेमाल ही नहीं कर सके……..
यह सुन सब गांव वाले लालाजी की तरफ देखने लगे…..
लालाजी शर्म से अपनी आँखे नीची किये खड़े रहे…
सरपंच ने लालाजी को पुरे गांव के सामने उस गरीब औरत से माफ़ी मांगने को कहा  व100 गुना जुर्माना भी उस औरत को देने का आदेश दिया……..

मिटटी कला का इतिहास

मिटटी कला का इतिहास

माना जाता है कि ”सरामिक नाम ग्रीक शब्द ”केरामिक से लिया गया है, जिसे मिटटी के पात्र बनाने की कला कहते हैं। आज कि उन सभी प्रयोग में आने वाली कृतियों को सिरामिक कहते हैं जिन्हें आग द्वारा पकाया जाता है। जर्मनी और फ्रांसीसी भाषा में ऐसी कृतियों को ”केरामिक और ”सिरामिक कहा जाता है।

पात्र बनाने की कला सबसे पुरानी है। इस कला की क्रमवार प्रगति को जानना बहुत मुशिकल है। आगे के पन्नों में एशिया और यूरोप में अनेक प्रकार के बने मिटटी के बने पात्रों की प्रगति का संक्षेप इतिहास वर्णन करने की कोशिश की है।

शायद सबसे पहले इन कृतियों को इस्तेमाल करने वाले लोग प्राचीन मिश्र के निवासी थी। टेराकोटा के कलश भरे हुए लोगों के सामान के लिए इस्तेमाल में आते थे। ये कल मेमहाइट अवधि 5000-3000वी0सी0 के मकबरों और कब्रों में पाये गये और कुछ र्इंटें नील घाटी के नीचे पार्इ गर्इ जिसे इस हजार वर्ष पूर्व बनी बताया जाता है।

कुछ समय बाद इन लोगों ने मिटटी की चमकीली कृतियों की कला को खोल निकाला जिन्हें आज भी स्तंभों और मंदिरों में देखा जा सकता है। अच्छे पात्र व कृतियाँ ज्यादातर आसमानी नीले और पीले हरे रंग की पतली चमक से ढके होते हैं। कभी-कभी मिटटी का अपना रंग भी होगा है परन्तु आमतौर पर यह सफेद ही होता है।
असीरीयन और बेबीलोनियन प्राचीनकाल से रंगीन टेराकोटा इस्तेमाल करते थे।

हीरोडोटस कहते हैं कि मध्यकाल की इक्वराना की दीवारें सात रंगों से रंगी थी। पुरातन असीरीयन में खोरसावाद की खुदार्इ में एक र्इंट द्वारा बनी दीवार को 21 फुट लम्बी और 5 फुट ऊँची थी, पर मनुष्य जानवर और पेड़ों की आकृतियाँ पार्इ गर्इ। नीनवह और बेवीलोन में मिटटी से बने पात्रों के नमूने जिन्हें500 वी0सी0 में बने माना जाता है, आज कल पेरिस के लोवरे संग्रहालय में पाये जाते हैं।

विश्वास किया जाता है कि परमिशनों फारसी ने इस कला को असीरियनों से सीखा और इस कला को उच्च श्रेणी की प्रवीणता को पाने में सफलता पार्इ। पुरातन परशियन पात्रों को बनाने के लिए उच्च ठोस पदार्थ का प्रयोग होता था और पारदर्शिक्षार अलकालीन द्वारा उमदा चमक दी जाती थी। पात्रों को हल्के पीले और नीे रंग की चमक से सजाया जाता था।

भारत में अनेक प्रकार की मिटटी से बनी कतियाँ बहुत प्राचीनकाल से इस्तेमाल होती आर्इ हैं। हाल में हुर्इ खुदार्इ से पता चलता है कि यह कला 4000 वर्ष पहले भी उन्नति पर थी। इसमें कोर्इ सन्देह नहीं कि सिघु घाटी में हड़प्पा और मोहनजोदड़ों की खुदार्इ में मिली वस्तुएँ सुमेरियन कला कृतियों में बहुत मेल खाती हैं जिन्हें र्इसा से तीसरी या चौथी सदी पहले की बनी आंका गया है।

यह मिटटी के पात्र किसके समय से मिलते-जुलते हैं और हड़प्पा और मोहन जोदड़ों के समय की मोहर हम्मूरसली समय के मंदिर के मलबे में पायी गर्इ।

पोटरी का वर्णन मंत्रों में मिलता है क्योंकि छठीं व नवमी सदी बीसी, में बने मनु के कानून ज्यादा स्पष्ट है। मिटटी के बर्तन भारत के प्राय: सभी भागों में प्रयोग होते हैं और कुम्हार हिन्दू समाज के महानकर्मी जाति के हैं।

अधिकतर पूर्व इतिहासिक शिला कृतियों की सतह को लाल, भूरी यााले रंग की चमक देते आये हैं और आज की साधारण कला कृतियों की बनावट और कारीगरी से कहीं बढ़कर है…………

साहसी मंजूनाथ–परमार्थी बनें

साहसी मंजूनाथ–परमार्थी बनें….

सच्चाई, ईमानदारी, साहस,….ये शब्द हमें किताबी लगते है. दरअसल, हमने ये मान लिया  है  कि किताबी बाते आचरण में उतारने के लिए नहीं होती है, बल्कि केवल परीक्षा पास कर अच्छी नौकरी पा लेने और अपनी शिक्षा को भूल जाने के लिए होती है….यह हमारी स्वार्थपरक सोच है.हम सिर्फ हमारे भौतिक सुख के बारे में ही सोचते है.इसके अतिरिक्त हमें दुसरो के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं मिलता….लेकिन ये सोच ठीक नहीं. हमें प्राणिमात्र, समाज, देश के लिए अवश्य सोचना चाहिए.ये ही अंतर है सामान्य और महान लोगो में….जितने भी महान लोग हुए है उनकी सोच प्रोंमुखी रही है. सामान्य से महान बनने की यात्रा के बीच इसी विचार का उदय महत्वपूर्ण होता है….

मंजूनाथ का उदाहरण हम ले सकते है…प्रभावशाली मंजूनाथ ने पढाई को कभी अच्छी नौकरी पाकर अच्छी कमाई  की वजह नहीं  समझा. उसके लिए देश की भलाई सर्वोपरि थी. उन्हें अच्छी नौकरी मिली , साधारण इन्सान की तरह यदि ये चाहते तो चैन से नौकरी कर सकते थे. लेकिन उन्होंने सच्चाई और ईमानदारी से कभी समझौता  नहीं किया.

तेल-माफियाओं के गोरखधंधों को वे सहन नहीं कर सके. और उन्होंने एक इमानदार अधिकारी के रूप में उनके विरुद्ध मोर्चा खोल दिया. अंततः शक्तिशाली माफिया ने उनकी हत्या कर दी… संघर्स, सहस, ईमानदारी, जैसे गुण ही थे कि मन्नजूथ लोगों के लिए  आदर्श बन गए. लोगों को आत्मविश्लेषण करना चाहिए और अपने भीतर छिपे मंजूनाथ को जगाना चाहिए.

हम सब में मंजूनाथ है, हम सब में सच्चाई, ईमानदारी, और साहस  के गुण मौजूद है, लेकिन हम अपनी आत्मोंमुखी सोच के कारण उसे उभरने का मौका नहीं देते…समाज में बुराइयों को देखकर भी नज़रन्दाज कर देते है और समाज के दोषी बन जाते है….तभी तो उनपर एक फिल्म बनाई गई है —-”मंजूनाथ..ईडियट था साला”….

दरअसल एक अच्छी नौकरी पा लेना, इंजिनियर या आईऐएस  बन कर अच्छी कमाई करने लगना ही हमारा लक्ष्य नहीं होना चाहिए.असली हीरो वही होता है जो, मुश्किलों से जूझकर समाज को बेहतर बनाने की हरसंभव कोशिश करता है…..लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि नकारात्मक सोच वाले कुछ लोग इन गुणों को अवगुणों और मुर्खता में शुमार करने लगे है…तमाम लोगो को आपने कहते सुना होगा -’जमाना ईमानदारी का नहीं’…

कई लोगों को ईमानदार बनने  पर हरिश्चंद्र की औलाद जैसे जुमले बोलते हुए भी देखा गया है. दरअसल ये सवार्थ के जुमले है, परमार्थ के नहीं. परमार्थ हमेशा लीक को तोड़कर नई रह बनाता है….. महावीर, बुध , नानक, स्वामी विवेकानन्द , महात्मा गाँधी आदि सभी परमार्थियों ने  लोगों को जीवन का सही मार्ग बताया….आज भी लोग भ्रमित है , उन्हें अपने  विचारों को बदलना होगा…….हमें भी समझना होगा कि समाज हमसे ही बनता है, जैसे हम होंगे समाज वैसा ही होगा. क्यों ना हम अपने  भीतर मंजूनाथ जैसा जज़्बा जगाएं, तभी हम समाज की बुराइयों से पार पा सकेंगे…..

*******

जब में छोटा था

एक दूसरे की गलतियों को स्वीकार करों…

ये उन दिनों की बात हे जब में छोटा था ओर माँ हमारे लिए खाना पकाती थी।

एक शाम माँ ने दिनभर की लम्बी थकान एवं काम के बाद जब डीनर बनाया तो उन्होंने पापा के सामने एक प्लेट सब्जी और एक जली हुई रोटी परोसी। मूझे लग रहा था कि इस जली हुई रोटी पर कोई कुछ कहेगा।

परन्तु पापा ने उस रोटी को आराम से खा लिया और मुझ से पूछा कि आज स्कूल में मेरा दिन कैसा रहा? मूझे नहीं याद मैंने क्या जवाब दिया था, परन्तु मैंने माँ को पापा से उस जली रोटी के लिए “सोरी” बोलते हुए जरूर सुना था।

और मैं ये कभी नहीं भूल सकता जो पापा ने कहा: “प्रिये, मूझे जली हुई कड़क रोटी बेहद पसंद हे।”
देर रात को मैने पापा से गुडनाईट बोलते हुए प्यार किया और पुछा, क्या उन्हें सचमुच जली रोटी पसंद हे?

उन्होंने मुझे अपनी बाहों में लेते हुए कहा – तुम्हारी माँ ने आज दिनभर ढ़ेर सारा काम किया, ओर वो सचमुच बहुत थकी हुई थी। ओर…वेसे भी…एक जली रोटी किसी को ठेस नहीं पहुंचाती परन्तु कठोर-कटू शब्द जरूर पहुंचाते हैं।

तुम्हें पता हे बेटा – जिंदगी भरी पड़ी हे अपूर्ण चीजों से…अपूर्ण लोगों से… कमियों से…दोषों से…मैं स्वयं सर्वश्रेष्ठ नहीं, साधारण हूँ ओर शायद ही किसी काम में ठीक हूँ। में भी दुसरों की तरह जन्मदिन, सालगिरह भूल जाता हूँ।

मैंने इतने सालों में सीखा हे कि-
“एक दूसरे की गलतियों को स्वीकार करों…अनदेखी करों… ओर चुनो… पसंद करो…आपसी संबंधों को सेलिब्रेट करना।”

मित्रों, जिदंगी बहुत छोटी हे…उसे हर सुबह दु:ख…पछतावे…खेद के साथ जागते हुए बर्बाद न करें। जो लोग तुमसे अच्छा व्यवहार करते हैं, उन्हें प्यार करों ओर जो नहीं करते उनके लिए दया… सहानुभूति…रखो।

किसी ने क्या खूब कहा है-
“मेरे पास वक्त नहीं उन लोगों से नफरत करने का जो मुझे पसंद नहीं करते, क्योंकि मैं व्यस्त हूँ उन लोगों को प्यार करने में जो मूझे पसंद करते हैं।”

अरे यारों, जिदंगी का आनंद लिजिये…उसका लुत्फ़ उठाइए…
उसकी समाप्ति…उसका अंत निश्चित है…

*******

ज़िन्दगी


जो चाहा कभी पाया नहीं,
जो पाया कभी सोचा नहीं,
जो सोचा कभी मिला नहीं,
जो मिला रास आया नहीं,
जो खोया वो याद आता है
पर
जो पाया संभाला जाता नहीं ,
क्यों
अजीब सी पहेली है ज़िन्दगी
जिसको कोई सुलझा पाता नहीं...

जीवन में कभी समझौता करना पड़े तो कोई बड़ी बात
नहीं है,
क्योंकि,
झुकता वही है जिसमें जान होती है,
अकड़ तो मुरदे की पहचान होती है।

ज़िन्दगी जीने के दो तरीके होते है!
पहला: जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो.!
दूसरा: जो हासिल है उसे पसंद करना सीख लो.!

जिंदगी जीना आसान नहीं होता; बिना संघर्ष कोई
महान नहीं होता.!

जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है;
कभी हंसती है तो कभी रुलाती है; पर जो हर हाल में
खुश रहते हैं; जिंदगी उनके आगे सर झुकाती है।

चेहरे की हंसी से हर गम चुराओ; बहुत कुछ बोलो पर
कुछ ना छुपाओ;

खुद ना रूठो कभी पर सबको मनाओ;

राज़ है ये जिंदगी का बस जीते चले जाओ।

"गुजरी हुई जिंदगी को
                   कभी याद न कर,

तकदीर मे जो लिखा है
               उसकी फर्याद न कर...

जो होगा वो होकर रहेगा,

तु कल की फिकर मे
           अपनी आज की हसी                          बर्बाद न कर...

हंस मरते हुये भी गाता है
और
      मोर नाचते हुये भी रोता है....

  ये जिंदगी का फंडा है बॉस

दुखो वाली रात
              निंद नही आती
  और
       खुशी वाली रात
                     .कौन सोता है...

ईश्वर का दिया कभी अल्प नहीं होता;
जो टूट जाये वो संकल्प नहीं होता;
हार को लक्ष्य से दूर ही रखना;
क्योंकि जीत का कोई विकल्प नहीं होता।
🌿

जिंदगी में दो चीज़ें हमेशा टूटने के लिए ही होती हैं :
"सांस और साथ"
सांस टूटने से तो इंसान 1 ही बार मरता है;
पर किसी का साथ टूटने से इंसान पल-पल मरता है।
🌿

जीवन का सबसे बड़ा अपराध - किसी की आँख में आंसू आपकी वजह से होना।
और
जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि - किसी की आँख में आंसू आपके लिए होना।
🌿

जिंदगी जीना आसान नहीं होता;
बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता;
जब तक न पड़े हथोड़े की चोट;
पत्थर भी भगवान नहीं होता।
🌿

जरुरत के मुताबिक जिंदगी जिओ - ख्वाहिशों के मुताबिक नहीं।
क्योंकि जरुरत तो फकीरों की भी पूरी हो जाती है;
और ख्वाहिशें बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है।
🌿

मनुष्य सुबह से शाम तक काम करके उतना नहीं थकता;
जितना क्रोध और चिंता से एक क्षण में थक जाता है।
🌿

दुनिया में कोई भी चीज़ अपने आपके लिए नहीं बनी है।
जैसे:
दरिया - खुद अपना पानी नहीं पीता।
पेड़ - खुद अपना फल नहीं खाते।
सूरज - अपने लिए हररात नहीं देता।
फूल - अपनी खुशबु अपने लिए नहीं बिखेरते।
मालूम है क्यों?
क्योंकि दूसरों के लिए ही जीना ही असली जिंदगी है।
🌿

मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
🌿

कभी भी 'कामयाबी' को दिमाग और 'नकामी' को दिल में जगह नहीं देनी चाहिए।
क्योंकि, कामयाबी दिमाग में घमंड और नकामी दिल में मायूसी पैदा करती है।
🌿

कौन देता है उम्र भर का सहारा। लोग तो जनाज़े में भी कंधे बदलते रहते हैं।
🌿

कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, आंखे मूंदकर उसके पीछे न चलिए।
यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों ?
🌿
 अच्छा लगा तो share जरुर करे
शીर्फ़ १ मिनट लगेगा.


पानी से तस्वीर कहा बनती है,
ख्वाबों से तकदीर कहा बनती है,
किसी भी रिश्ते को सच्चे दिल से निभाओ,
ये जिंदगी फिर वापस कहा मिलती है
कौन किस से चाहकर दूर होता है,
हर कोई अपने हालातों से मजबूर होता है,
हम तो बस इतना जानते है,
हर रिश्ता "मोती"और हर दोस्त "कोहिनूर" होता है।


add